Tuesday, August 5, 2008

Blogging /Aatm-manthan

ब्लॉगिंग के क्षेत्र में इस पहली रचना 'आत्ममंथन' से क़दम रखा है।  अपने विचारों अनुभवों को अपने पाठकों साथी ब्लॉगरो से शेअर करने के लिये। ब्लॉग का टाइटल भी "आत्ममंथन" ही रखा है। पता नहीं यह सिलसिला कब तक जारी रख पाउँगा। प्रस्तुत है पहली ग़ज़ल :-

आत्ममंथन 

"उधार का ख़्याल"* है?    *Borrowed thought
नगद तेरा हिसाब कर्।

भले हो बात बे-तुकी,
छपा दे तू ब्लाग पर्।

समझ न पाए गर कोई,
सवाल कर,जवाब भर्।

न तर्क कर वितर्क कर,
जो लिख दिया किताब कर्।

न मिल सके क्मेन्टस तो,
तू खुद से दस्तयाब* कर्।           *उपलब्ध

तू छप के क्युं छुपा रहे,
न 'हाशमी' हिजाब* कर्।            *पर्दा


-मन्सूरअली हाशमी



3 comments:

Anonymous said...

kya baat hai mansoor bhai
majaa le rahe ho.........

seema gupta said...

"beautifully written, marvelleous"
Regards

प्रदीप मानोरिया said...

ब्लॉग जगत में आपका हार्दिक स्वागत है | अपने विचारो का संप्रेषण जारी रखें . सुंदर अभिव्यक्ति -सुंदर शब्द रचना समय निकाल कर इस तरफ भी नजर करें :http://manoria.blog.co.in and http://manoria.blogspot.com
धन्यबाद