Tuesday, August 5, 2008

स्वयं /myself

                    स्वयं






क्या हूँ मैं ?

नियति की उत्पत्ति?
दो विपरीत तत्वो का सम्मिश्रण !
वासना की उपज ?
  या 
आल्हाद का जमा हुआ क्षण !
…… हाँ, शायद ....... 
कोई ऐसा जमा हुआ क्षण ही हूँ मैं,
जो भौतिक रूप में अभिव्यक्त हो गया हूँ। 

मगर मेरी भौतिकता कि इस अभिव्यक्ति को, व्यक्त कौन कर रहा है ?
मन !,    अदृश्य मन !!,  अभूज मन !!!

बारहा, इस मन को  समझाने की प्रक्रिया से गुज़र कर भी'
ख़ुद इसी को नही समझ पाया हूँ। 

यह मन। …जल पर मौज, थल पर तितली और आकाश में इंद्रधनुष सा लगा …
पर मेरे हाथ, कभी न लगा !
इंद्रधनुष के रंगो की विभिन्नता से इसकी प्रकृति समझ में आ रही थी कि 
यकायक वह भी ग़ायब  हो गया। 
रंगो का यह प्रतिबिम्ब बहुत समय तक आँखों में समाया रहा,
नेत्रों को बंद कर उसे सहेजने का प्रयास किया,
मन के 'सतरंगी' होने का आभास तो था ही,
किन्तु, वह प्रतिबिम्ब भी धुंधलाते हुए बेरंग हो गया। 
रंगीन मन का बेरंग होना, विचित्र स्थिति, विचित्र अनुभूति, वैराग्य भाव सी !
सरल हो रहा लगता यह मन और जटिल हो गया। 

आज, अचानक, बैठे-बैठे पारे समान चंचल मन को पकड़ लिया है,
अंगूठे और तर्जनी मध्य, मैंने मन को जकड़ लिया है। 
व्यस्त अब तर्जनी है मेरी यह मेरी जानिब ही उठ रही है। 
(किसी पे अब कैसे उठ सकेगी ?)
मैं अपने भीतर ही जा रहा हूँ; ध्यानावस्था में आ गया हूँ। 
थमी है चंचलता मन की कुछ-कुछ,
नए रहस्यो को पा रहा हूँ। 
था दूर, मन …… तो पहाड़ जैसा ! मगर अब चुटकी में आ गया है,
मेरा यह मन मुझको भा गया है। 

मैं दंग हूँ ! देख रंग इसके। 
हवस, तमस , और पशुत्व इसमें,
सरल, उज्जवल मनुष्यता भी। 
दया भी है, क्रूरता भी इसमें,
मनस भी है, देवता भी इसमें। 
है सद्गुणी तो कुकर्मी भी ये,
गो नेक फितरत, अधर्मी भी है। 
बुज़ुर्ग भी बचपना भी इसमें,
है धीर गम्भीर, नटखटी भी। 
मचल रहा उँगलियों में मेरी …. उड़ान भरना ये चाहता है। 
समझ रहा हूँ इसे जो कुछ-कुछ , अजीब करतब दिखा रहा है। 
है मन के अंदर भी एक ऊँगली, हर एक जानिब जो उठ रही है,
सभी को ये दोष दे रही है, सभी पे आक्षेप कर रही है। 
दबा रहा हूँ मैं अपने मन को,
अरे ! कहाँ है ? कहाँ मेरा मन …… 
न जाने कब का फिसल गया वह, 
ये मेरी ऊँगली है और मेरा तन,
स्वयं को पा और खो रहा हूँ !
न पा रहा हूँ, न खो रहा हूँ !!     

Note: {Pictures have been used for educational and non profit activies.
If any copyright is violated, kindly inform and we will promptly remove the picture.
        मन्सूर अली हाशमी

2 comments:

Anonymous said...

koi adchan nahin hai jajbaat vyakt karne me

maja aayaa padhne men

Anonymous said...

Kavita me ek Kasak hai.. Majaa aaya padhne me.

- Ashwin Saxena, Age -19, Ratlam