Monday, September 15, 2008

Blogging-8

ब्लागियात-8

दादा द्विवेदीजी* को प्रणाम:-


दो ही वेदों को पढ़ के ये आलम,
दर्दे-इंसानियत से है लबरेज़,
बात इन्साफ ही की करते है,
है कलम आपका बहुत ज़रखेज़*

*उपजाऊ


-मंसूर अली हाश्मी.

*तीसरा खंबा 

2 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

बड़े दादा तो आप ही हैं। आप से कम से कम सात बरस छोटा हूँ।

Ashish said...

hats off to you sir