Saturday, December 27, 2008

चौथा बन्दर

चौथा बन्दर

स्थान:- मकान की छत
समय:- प्रात: 6 बजे
कार्य:- ब्लाँगरी

फ़िर वही सुबह,वही छत,वही ब्लाँगिन्ग्। आज फ़िर बन्दर दर्शन हुए। यक न शुद, दोशुद [एक नही दो-दो]।
हाश्मी: बहुत खुश हो , क्य बात है? बन्दरजी!

बन्दर: बन्दर नही, ज़रदारी कहो, अब मैं भी मालदार[ज़रदार] हो गया हूँ.
हाश्मी: कोई मदारी मिल गया क्या?
बन्दर: नही, मेरे पहले ब्लाग "अथ श्री बन्दर कथा" की बदौलत्।
हाश्मी: वाव! कितने डालर मिले?
बन्दर: डालर! उसका हम क्या करे? हमे कोई जूते थोड़े ही खरीदना है!
हाश्मी: फ़िर क्या मिल गया है?
बन्दर: आम का बग़ीचा, पूरे दस पैड़ है।
हाश्मी: किसने दिया?
बन्दर: एक एन आर आई ने, वह अपने कुत्ते के नाम वसीयत करने वाला था, मगर वह किसी मंत्री पर भौंक बैठा और मारा गया। ऐसे में संयोग्वश उस एन आर आई ने मेरी "अथ श्री कथा"
पढ़ ली, इतना प्रभावित हुवा कि पहली ही तश्तरी में उड़ान भर कर मेरे पास आ पहुंचा।
इस तरह उसका 'चौपाए खाते' वाला दान मेरी झोली में आ गया। मैं , बैठे-बिठाये पंच हज़ारी हो गया। पांच हज़ार आम सालाना का मालिक!
हाश्मी: यह तुम्हारे साथ दूसरा कौन है?
बन्दर: यह मेरे ब्लोग का फ़ोलोअर है। जब से मैं ज़रदारी बना हूँ, मेरा  पीछा ही नही छोड़ रही, बन्दरी है ये, समझे ना?
हाश्मी: अब क्या करोगे?
बन्दर: ब्लाँग से अच्छा क्या काम हो सकता है, वही जारी रखूंगा।
हाश्मी: अभी क्या लिख रहे हो?
बन्दर: लिख तो लिया है, अभी तो इस चिंता में हूँ कि 'ब्लाँग एडरेस' क्या बनाऊँ? 'तीन बन्दर' तो
मनुष्य ने रजिस्टर्ड कर ही रखे है। सौचता हूँ 'चौथा बन्दर' ही नाम दे दूँ?  "बुरा मत लिखो" के सलोगन के साथ्। बाकी तीन सलोगन - बुरा न बोलना, न सुनना व न देखना का ठेका तो
मनुष्य ने उसके प्रतीक बन्दरो को सौंप निश्चिंत हो गया है। यह चौथे बन्दर की प्रेरणा मुझे आप लोगों के चौथे स्तंभ से भी मिल रही है, जो शायद लिखने-लिखाने की बाबत ही है। हालांकि
पहले तीन बन्दर भी अपना संदेश पहुंचाने में असफ़ल प्रतीत हो रहे है, फ़िर भी यह 'चौथा बन्दर'' अति आवश्यक इसलिये हो गया है कि आज कल आप लोग निर्बाध हो कर कुछ भी लिखते चले
जा रहे हो। मुझ में तो गाँधीजी बनने की यौग्यता नही मगर मैं  उस आदर्श-पुरुष को नमण कर अपना 'चौथा बन्दर' लांच कर रहा हूँ, नये वर्ष की पूर्व संधया पर, "बुरा मत लिखो'' के नारे के साथ्। तर्कवादी मनुष्य कोई गली न निकाल ले इसलिये इस नारे को ''बुरा मत छापो" के संदर्भ में भी लिया जाए।
यह बात मुझे अच्छी तरह पता है कि मनुष्य इस चौथे बन्दर को अपने तीन आदर्श बन्दरो के साथ जगह नही देंगे। फ़िर मैं इसको स्थापित कहाँ करुं?  बल्कि क्यों करूँ?,  हम बन्दर आप लोगों की तरह रुढ़िवादी नही है, कहीं टिक कर बैठना, आप लोगों की तरह कुर्सी या सिंहासन पर चिपक जाना हमारी फ़ितरत के खिलाफ़ है।
आपको इस चौथे बन्दर के दर्शन भी आसानी से उपलब्ध हो जाएंगे, आपके तथा कथित निकट वर्तमान के नेताओ की जो मूर्तीयाँ  जगह-जगह पर स्थापित है;  उस पर सवार कोई बन्दर नज़र आये तो समझ लेना वही चोथा बन्दर है, प्रतीकात्मक रूप में यह कहता हुआ कि "बुरा मत लिखो",  नही तो आपकी भी मूर्ती कहीं लग जएगी!
हाश्मी: वाह-वाह! ये तो पूर ब्लाँग ही बन गया!
बन्दर: ब्लाँग नही बन्दरलाँग कहिये।

अचानक बन्दरी उछल कर बन्दर के सिर पर सवार हो गयी.....मैने आश्चर्य से पूछा…ये क्या!
बन्दर: नही समझे?…यही तो चौथा बन्दर है…बोले तो…? "बुरा मत लिखो"…हम चले…बाय!

3 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

ताजा ब्लाग बंदरलाग?

Udan Tashtari said...

तश्तरी में उड़ान भर कर भागते चले आये बंदरलॉग देखने. :) अब हम भी चले...बाय!

M. Mustali Mansoorali said...

bahut hi bariya likha hai....

Mustali