Sunday, November 8, 2009

चटका/Comments!

चटके का झटका 

वाणी मेरी पढ़के उसने आज एक चटका दिया,
अर्थ उनके शब्दों का में ढूंढ़ता ही रह गया,
वो लिखे कि- इतने सुन्दर,कितने सुन्दर आप है,
इस बुढापे में ये कितनी ज़ोर का झटका दिया.


अब ब्लागों पर लगी तस्वीर का मैं  क्या करू,
छप गई; हटती नहीं मुझसे दुबारा क्या करू,
Mail पर भी तो वो आने लगे है आजकल,
थोड़ा-थोड़ा मुझको भी भाने लगे है क्या करू?


नेट पर छपना भी अब तो छोड़ देना चाहिए,
रिश्ता-ए-कागज़ कलम फिर जोड़ देना चाहिए,
नेट के रिश्तो से डर लगने लगा है आजकल,
टिप-टिपाकर pass है ;अब  'मोड़' देना चाहिए. 


-मंसूर अली हाशमी 

1 comment:

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

नेट पर छपना भी अब तो छोड़ देना चाहिए,
रिश्ता-ए-कागज़ कलम फिर जोड़ देना चाहिए,

ये तो आपने मेरी दिल की कही. मेरे लिए कागज़ कलम चिट्ठी अनमोल है.