Friday, January 8, 2010

नुस्ख़ा

नुस्ख़ा

बढ़े ठंडक ! तो इतना काम कर जा ,
'अमर' बन, इस्तीफा देकर गुज़र जा.

बदल ले भेष*, ग़ालिब कह गए है,
तू खुद अपना ही तो 'कल्याण' कर जा.

'नदी' की 'त'रह बहना खुश नसीबी,  [N D T]
तकाज़ा उम्र का लेकिन ठहर जा.

करे 'आशा'ए तेरी 'राम' पूरी,
ज़रा तू 'लालसाओं' से उभर जा.

*भेष= पार्टी
-मंसूर अली हाशमी

 

4 comments:

राज भाटिय़ा said...

वाह क्या बात है, बहुत सुंदर जी

Udan Tashtari said...

करे 'आशा'ए तेरी 'राम' पूरी,

-बहुत सही!!

नीरज गोस्वामी said...

क्या बात है मंसूर भाई...वाह...क्या लपेट लपेट के मारा है कमबख्तों को....लाजवाब...
नीरज

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

दो लाइन में सटीक बात.

सुन ले सभी.