Wednesday, August 18, 2010

बातों-बातों में

बात निकली तो हरएक बात पे कुछ याद आया!  




 Mansoorali Hashmi

 to उडन तश्तरी.... 


समीर जी प्यारी ग़ज़ल कही आपने, ख़ुद को दिलासा आदमी यूं भी दे लिया करता है, जश्ने आज़ादी के मौके पर अत्यंत ही निराशाजनक तस्वीर पेश की गई ब्लॉगर जगत में, देश की एवं मौजूदा हालात की. कुछ लोगो को तो लगता है कि सब कुछ ही ख़त्म हो गया है. ऐसे में आपने एक अच्छा 
सपना भी देखा है और उसमे कोई अपना भी देखा है:-  "मुद्दतो बाद कोई आने लगा अपने सा,  रात भर ख़्वाब में मैंने उसे आते देखा." बहुत ख़ूब.

                               "मुद्दतो बाद सही  कुछ तो हुआ आपके साथ" 
 आपके हर शेर ने कुछ  कहलवा लिया है, इजाज़त हो तो अपनी पोस्ट पर दाल दूँ आपकी रचना के साथ? 
Starred

Sameer Lal

 to me

हज़ूर


आप भी गज़ब करते हैं-सम्मान का विषय है मेरे लिए और आप को पूछने की कैसे जरुरत आन पड़ी. आपका अधिकार और स्नेह है. जरुर छापें.
बेहतरीन उभरे हैं आपके हर शेर. वाह
सादर  -समीर 
समीर लाल जी                                                                                                                                 हाश्मी                                                                                 
मुद्दतों बाद उसे दूर से जाते देखा                     धूप से आँख मिचोली का भी मौक़ा तो मिला
धूप को आज यूँही नज़रे चुराते देखा                सर्द रिश्तो को कही पर तो पिघलते देखा 

मुद्दतों  बाद हुई आज ये कैसी हालत               ख़ुश्क आँखों को नमी का भी तो अहसास हुआ
आँख को बे वजह आंसू भी बहाते देखा            दर्द बन कर जो इन आंसू को टपकते देखा

मुद्दतों बाद दिखे है वो जनाबे आली                वोट के ही तो सवाली है, "बड़ी बात है यह" 
वोट  के वास्ते सर उनको झुकाते देखा            हाकिमे वक़्त को आगे तेरे झुकते देखा

मुद्दतों बाद खुली नींद तो पाया हमने               नींद आ जाए ये नेअमत है बड़ी चीज़ यहाँ
ख़ुद  को सोने का बड़ा दाम चुकाते देखा           और सोने पे सुहागा तुझे जगते देखा 

मुद्दतों बाद जो लौटा हूँ मैं घर को अपने            खुशनसीबी है कि भाई भी है अपना कोई
अपने ही भाई को दीवार उठाते देखा                 अब जो 'दीवार' है, "उसको भी तो गिरते देखा"

मुद्दतों बाद कोई आने लगा अपने सा                खवाब में ही सही अपनों से मुलाक़ात तो की
रात भर खवाब में मैंने उसे आते देखा               उनके शिकवो को शिकायात को झड़ते देखा

मुद्दतों  बाद किसी ने यूं पुकारा है "समीर"        देर से "हाशमी" पर तुझको पुकारा तो सही 
ख़ुद ही ख़ुद से पहचान कराते देखा                    ख़ुद की पहचान को यूं भी तो निखरते देखा.  
  
Regards.

-मंसूर अली हाश्मी.
 

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