Friday, September 3, 2010

कुछ तो करना ही पड़ता!

कुछ तो करना ही पड़ता!

"धान के देश"  में अवधिया जी के सवाल....


सठियाने वाली उम्र में ब्लोगिंग कर के तू कौन सा तुर्रमखां बन जाएगा?


....का जवाब ढूंढने की कौशिश ......
लिखते न गर ब्लॉग तो क्या कर रहे होते?
टी.वी. के चेनलो पे गुज़र कर रहे होते.


योगा कोई, कसरत तो कराटे की मदद से,
'सिक्स पेक' बना ख़ुद पे नज़र कर रहे होते.

उपदेशो हिकायात  श्रवन करके गुरु से,
'सात्विकता'! से जीवन को बसर कर रहे होते.

चाणक्य-नीति सीख विशेषज्ञों की मदद से,
कुछ बात इधर की वो उधर कर रहे होते.


और ब्लोगरियाँ:-
तकलीफे 'अक्षरा'* से परेशाँ जो कईं तो   
'प्रतिज्ञा'* के 'ससुरे' से कईं डर रही होती, 

रेंपो पे  निहारा जो 'करीना' को जलन-वश,
'कमरों' को वो अपनी भी कमर कर रही होती.

*star plus  के सीरियल्स  

--
mansoorali hashmi

4 comments:

Majaal said...

जो करते न blogging, न होती बेचैनी,
यूँ इंतज़ार-ए-comments तो न कर रहे होते !

उम्मतें said...

"उपदेशो हिकायात श्रवन करके गुरु से,
सात्विकता से जीवन को बसर कर रहे होते"

हाहा...जोरदार ! ब्लागिंग नें बचा लिया !

दिनेशराय द्विवेदी said...

अच्छा हुआ, आप ने हकीकत अपनी खुद बयाँ कर दी।

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ said...

मंसूर साहेब,
आदाब!
पसंद आया आपका अंदाज़-ए-शादाब!
आशीष