Thursday, September 23, 2010

सेल्फ पोर्ट्रे


सेल्फ पोर्ट्रेट [आखरी 'ट' को न पढ़े अँगरेज़ एसा ही करते है]



यह ब्लॉग विचार शून्यता की उपज यूं है कि इसकी प्रेरणा निम्न टिप्पणी से मिली "विचार शून्य" जी की. ख्याल आया कि एक सचित्र रचना ही लिख दूँ  कि उनकी असमंजसता दूर हो . इस तरह ये "self  portrait " चेहरे  के  विभिन्न अंगो  को  विश्लेषित  करती  हुई  हाज़िर  है . इस तरह मुझे ये  भी मोका मिल गया कि ख़ुद की भी बखिया उधेडू   जबकि मैं आमतौर  पर समाज, देश एवं दुनिया को निशाना बनाता रहता हूँ. 

VICHAAR SHOONYA said...

जनाब मुझे तो बस ये बता दें की ब्लॉग पर लगी दो

तस्वीरों में से आपकी कौनसी वाली शक्ल है आजकल
8 September 2010 11:53 PM 
नोट:- {Pictures have been used for educational and non profit activies. If any copyright is violated, kindly inform and we will promptly remove the picture.???}

इक 'लट' में, दाढ़ी की मैरी बड़ी शरारत है,
झूठ पे लहरा जाना फ़ौरन इसकी आदत है. 
सच सुनकर तो गले ये मेरे लग-लग जाती है.
छुपी हुई इसमें भी इक गहरी मुसकाहट है.




जुबां की अब क्या ज़रूर जबकि ब्लॉग बोले है,
दाँत गए जब से ये चाचा मुंह कम खोले है,
टिप-टिप टिपयाते रहते कुछ मन में आस लिए,
दिन भर में दस बार कोई वो 'mail' भी खोले है.

मूंछ तो अब ऎसी कि जैसे ऐनक होंठो की 
उसको तो बस मिली हुई है बैठक होंठो की,
तांव जो आता, तेज़धार तलवार सी लगती थी,
कभी हुआ करती थी ये तो रौनक होंठो की.  

नाक तो अब ऐसी कि ज्यों छींको का है डेरा,
मक्खी न बैठी थी जिस पर पोतो ने छेड़ा,
गंध कचौड़ी की अब इसको न आ पाती है,
उंचा रहते-रहते ख़ुद को कर बैठी टेढा.



आँखों के ऊपर तो मोटा चश्मा चढ़ बैठा
चटक-मटक सब भूल मियाँ जी अपने घर बैठा,
चाट  चुके  अखबार अभी टी.वी की बारी है,  
laptop  भी सुबह-सुबह गोदी पे चढ़ बैठा.

पेशानी पर सलवट है पर व्यंग्य भाव मुखड़ा!
अब तक देश,समाज,जगत का रोते थे दुखड़ा,
देख आईना आज हुए है गहन धीर-गंभीर,
ख़ुद पर क़लम चली तो ,लिख डाला ये 'टुकड़ा'.

--
mansoorali hashmi

9 comments:

उम्मतें said...

अब वो ये ना पूछ लें कि इन चार में से कौन सी :)

Mustali said...

Jisne Apne Aap (Swayam) ko Jaan Liya Usne Apne Khuda Ko Jaan Liya.

BrijmohanShrivastava said...

किवला ,आपने तो समां बांध दिया ,इस उम्र में भी आपके चेहरे का तेज देख कर प्रभावित हूं । मै तो यही समझता था कि रतलाम में एक ही ब्लागर है विष्णु वैरागी और गुना में मै अकेला हूं । मगर जनाब के ब्लाग का तो पता आज चला यह भी महज एक इत्तेफाक है कि मै आजकल रतलाम में ही हूं ।वैरागी जी से तलाश करुंगा कि वो आपको जानते हैं या नहीं अन्यथा किसी अन्य तरह आपके दीदार को हाजिर होउंगा ।

Mansoor ali Hashmi said...

नमस्कार , श्रीवास्तव साहब,
आपकी आमद बाइसे मसर्रत है, मैं पिछले ३ माह से कुवैत में बच्चों के साथ हूँ, २ ओक्टोबर को रतलाम पहुँच रहा हूँ, उम्मीद है तब तक आप वहाँ कयाम फ़रमाएंगे, वहां मैरा संपर्क नंबर . ये है:-
०७४१२-२३७५३८
९२०२२३४२९८
इस दरमियान आपके ब्लॉग कि सैर कर कमेन्ट से संपर्क करने कि कौशिश करूँगा. धन्यवाद.
मंसूर ali हाश्मी.
http://aatm-manthan.blogspot.com

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

इस सेल्फ पोर्ट्रेट पर तो हम दंग रह गए..

शरद कोकास said...

भाई मज़ा आ गया ।

देवेन्द्र पाण्डेय said...

यही प्रश्न तो हमने भी किया था....
चाहे जितने गंभीर बन के फोटू खिंचवाओ चचा लेकिन तश्वीरें बोल ही देती हैं..इन तश्वीरों में बचपन की मासूमियत अभी ताजी है।

देवेन्द्र पाण्डेय said...

मेरी टिप्पणी कहाँ गई ?

Udan Tashtari said...

वाह जी..आपने खुद को बखाना और हमने आपको जाना...