Wednesday, November 17, 2010

'लक्ष्मी' की चाह ने कई 'उल्लू' बना दिये !


'लक्ष्मी' की चाह ने कई 'उल्लू' बना दिये !


'भज्जी'  ने 'kiwi' बोल के भजिये बना दिये,
'अठ-नम्बरी' ने बेट से छक्के छुड़ा दिये. 

'राजा' ने बिना-तार* भी छेड़े करोड़ों राग,    [*wireless]
'अर्थो' की सब व्यवस्था के बाजे बजा दिये.

'आदर्श हो गए है, हमारे flat* अब,   [*ध्वस्त]
'ऊंचाई' पाने के लिए ख़ुद को गिरा दिये.

'दर्शन' को जिसके होते हज़ारो कतारबद्ध!
वाणी के बाण से कई मंदिर* ढहा दिये.  [*अनुशासनिक आदर्श] 

mansoor ali hashmi

5 comments:

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

वाह कविता तो क्रिकेटमयी हो गई

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

आदरणीय मंसूर अली हाशमी चचाजान
आदाब अर्ज़ है !


आपकी ग़ज़ल - हज़ल कोई भी रचना पढ़ें और , पढ़ते - पढ़ते अपने आप ही चेहरे पर मुस्कुराहट न आए … ऐसा हो ही नहीं सकता ।
'भज्जी' ने 'kiwi' बाल के भजिये बना दिये,
'अठ-नम्बरी' ने बेट से छक्के छुड़ा दिये


और हास्य के पीछे छुपे व्यंग्य की मारक क्षमता देखते ही बनती है ।
आपकी पिछली तमाम पोस्ट्स पढ़ने आता रहा हूं । हां, स्वास्थ्य और नेट समस्या सहित कुछ व्यस्तताओं के चलते प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं कर पाया । और सच तो यह है कि आपकी रचनाएं मूल्यांकन की सीमाओं से बहुत आगे है , नमन स्वीकारें !


… और हां , आपको सपरिवार ईद मुबारक !

- राजेन्द्र स्वर्णकार

दिनेशराय द्विवेदी said...

शब्दों का अनूठा प्रयोग करना आप की खूबी बन गई है।

उम्मतें said...

गहरा व्यंग ! मारक शब्द !
ईद की मुबारकबाद क़ुबूल फरमाइए !

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

बहुत खूब। ईद की हार्दिक शुभकामनाएं।