Thursday, November 25, 2010

ये क्या कर दिया !

ये क्या कर दिया !
पूंजी के   'विचरण' ने जब 'बाएं' को 'दायाँ' कर दिया,

ख़ुद हथौड़े ने ही, हंसिये  का सफाया कर दिया.     





'दस्तकारी' में कुशल अँगरेज़ ने इस मुल्क को.
एक था सदियों से जो, मैरा-तुम्हारा कर दिया.

रुक गई थी ट्रेन, लो! अब बुझ गयी है लालटेन,
'चारागर'  को किसने ये आखिर बिचारा कर दिया.   
      
'ये-दू', वोह दूँ , सब दूँ  लेकिन इस्तीफा मांगो नही,       
मैं 'विनोबा' आज का,   'भू- दान' सारा कर दिया.

लुट गई इक बार फिर, नगरी ये 'हस्तिनापुरम'*          
अपने ही लोगो ने अबकी काम* सारा कर दिया.      *C.W.G.




शब्द ले "शब्दावली"* से 'हाशमी' ने आज तो, 
लेख अपना, जैसे-तैसे आज  पूरा कर दिया.

*http://shabdavali.blogspot.com

Note: {Picture have been used for educational and non profit activies. If any copyright is violated, kindly inform and we will promptly remove the picture.}
-- mansoorali hashmi

7 comments:

Majaal said...

साहब, आप अपनी रचनाओं में कोष्ठक का खामखा इस्तेमाल करते है, हमें इसके बिना ही समझ में आ जाता है, बाकी जिनको समझ नहीं है, उनको कोष्ठक की जानकारी से भी कोई लाभ नहीं होने वाला... तो हमारी राय माने तो बस लिख दिया करिए जस का तस.. खुद पर भरोसा रखिये और कविताई / शायरी समझाने वालों की समझ पर भी.. बाकी सब चिंता उपरवाले पर छोड़ दीजिये ...
रचना तो खैर उम्दा है ही ... बहुत बढ़िया कटाक्ष ....जारी रखिये ...

Mansoor ali Hashmi said...

Ajit Wadnerkar said:-


बहुत खूब हाशमी साहब,
आपके शुभचिन्तक ने ऊपर जो सुझाव दिया है उस पर भी गौर कर सकते हैं।
आज आपके ब्लाग पर टिप्पणी नहीं जा रही है।

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

bahut shaandaar... mazaa aa gaya... koshthak kaayam rakhiye... jinhe samajh me nahi aa raha hoga unhen bhi aa jayega...

दिनेशराय द्विवेदी said...

मैं भी वही कहना चाहता हूँ जो वडनेरकर जी कह चुके हैं।
पहला शेर बहुत ज़हीन है।

उम्मतें said...

मुझे तो सारे के सारे शेर ज़हीन लगे ! जबरदस्त तंज़ !

Mansoor ali Hashmi said...

@ मजाल, अजित वडनेरकर, दिनेश रायजी:

कोष्ठक थे प्याज़ के छिलके, उतरते ही गए,
बुद्धिजीवी खुश हुए, शब्दों पे 'पर्दा' कर दिया.

@ भारतीय नागरिक:

बहुमत को मान दिया है.

@ अली साहब:

शुक्रिया.


धन्यवाद आप सबका.

केवल राम said...

रुक गई थी ट्रेन, लो! अब बुझ गयी है लालटेन,
'चारागर' को किसने ये आखिर बिचारा कर दिया.
बहुत जोरदार गजल ....सोचने पर मजबूर करती हुई ...चारागर को विचारा कर दिया
चलते -चलते पर आपका स्वागत है