Monday, June 27, 2011

Hodge-Podge


अब करे तो क्या?

लगता नहीं है जी मैरा अबतो ब्लॉग में,
शब्दों में वायरस है , छुपे अर्थ fog में.

होने लगा शुमार अब लिखना भी रोग में,
किस्मत अब आजमाए चलो अपनी योग में. 

हम ढूँढते नहीं इसे अपनों या ग़ैर में,
अब तो सिमट गयी है वफाए भी Dog में.

पहले तलाशे मोक्ष का साधन ही त्याग था,
अब खोजा जा रहा है उसे सिर्फ भोग में.

था सच का बोल बाला तो झूठे थे शर्मसार,
शर्मो हया बची है अब गिनती के लोग में 

mansoor ali hashmi 

6 comments:

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

मोहतरम मंसूर चचा्जान
आदाब !

लगता नहीं है जी मेरा अब तो ब्लॉग में पढ़ते ही परेशान हो गया … हमारे मंसूर चचा ब्लॉगिंग छोड़ न दे कहीं … फिर हमारा जी कहां लगेगा ?

:) आपके प्यारे निराले अंदाज़ पर तो हम जानो-दिल से फ़िदा हैं …
था सच का बोल बाला तो झूठे थे शर्मसार,
शर्मो हया बची है अब गिनती के लोग में

क्या किया जाए …

बेशर्मी और ढीठता बीमारियां बुरी
नकटों को मज़ा मिल रहा है आज रोग में

आदाब अर्ज़ है… आदाब अर्ज़ है !

हमेशा की तरह बेहतरीन !

शुभकामनाओं सहित
राजेन्द्र स्वर्णकार

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

मोहतरम मंसूर चचाजान
आदाब !

लगता नहीं है जी मेरा अब तो ब्लॉग में पढ़ते ही परेशान हो गया … हमारे मंसूर चचा ब्लॉगिंग छोड़ न दे कहीं … फिर हमारा जी कहां लगेगा ?

:) आपके प्यारे निराले अंदाज़ पर तो हम जानो-दिल से फ़िदा हैं …
था सच का बोल बाला तो झूठे थे शर्मसार,
शर्मो हया बची है अब गिनती के लोग में

क्या किया जाए …

बेशर्मी और ढीठता बीमारियां बुरी
नकटों को मज़ा मिल रहा है आज रोग में

आदाब अर्ज़ है… आदाब अर्ज़ है !

हमेशा की तरह बेहतरीन !

शुभकामनाओं सहित
राजेन्द्र स्वर्णकार

दिनेशराय द्विवेदी said...

मंसूर भाई!
बहुत शानदार तंज है -
हम ढूँढते नहीं इसे अपनों या ग़ैर में,
अब तो सिमट गयी है वफाए भी Dog में.

Udan Tashtari said...

अब जैसा भी है...लगाये रहिये मन!!!!

वीना श्रीवास्तव said...

पहले तलाशे मोक्ष का साधन ही त्याग था,
अब खोजा जा रहा है उसे सिर्फ भोग में.

था सच का बोल बाला तो झूठे थे शर्मसार,
शर्मो हया बची है अब गिनती के लोग में

जवाब नहीं....
कहीं तो मन लगाना पड़ेगा...लिखना क्या बुरा है....

उम्मतें said...

@ what to do ?
जो नहीं कहा है अभी वो समझ भी जाओ !
हम भी तो हैं तुम्हारे...दीवाने ओ दीवाने !

@ पहले तलाशे मोक्ष का साधन ही त्याग था !
अब जो ब्लॉग हैं सो वहां त्यागते हैं सब :)

[ यूं तो त्याग बहुआयामी लफ्ज़ है पर फिलहाल हमने उसे विचार विसर्जन के लिए वापरा है :) ]