Saturday, February 4, 2012

'धोया' किसी ने भी हो 'सुखाया' हमीं ने है !


'धोया' किसी ने भी हो 'सुखाया' हमीं ने है !


गणतंत्र का मज़ाक उड़ाया हमीं ने है,
भ्रष्टो को सर पे अपने बिठाया हमीं ने है.

जो लूट कर चले गए, वो तो थे ग़ैर ही,
फिर उसके बाद; लूट के खाया हमीं ने है.

खेलो में हार-जीत तो होती ही रहती है !
दोनों ही सूरतो में कमाया हमीं ने है !!


"घोटाला करके बच नहीं सकता कोई यहाँ"
इस 'सच' को कईं  बार 'झुठाया' हमीं ने है !

'थप्पड़' भी खाके, दूसरा करते है 'गाल' पेश,
घर जाके 'बादशा'* को मनाया हमीं ने है.        *SRK
Note: {Picture have been used for educational and non profit activies. If any copyright is violated, kindly inform and we will promptly remove the picture.}
--mansoor ali hashmi 

15 comments:

विष्णु बैरागी said...

आपने बिलकुल सही कहा हाशमीजी। इस दुदर्दशा के लिए हम ही जिम्‍मेदार हैं। हम यदि इसी तरह आत्‍मपरकता से सोचें और सवाल पूछना और टोकना शुरु कर दें तो किसी की हिम्‍मत नहीं कि मनमानी कर सके। सब कुछ किया हम ही ने।

दिनेशराय द्विवेदी said...

आखिर इसे ठीक भी हमें ही करना होगा।

उम्मतें said...

धोनी के व्हाइट वाश पे खामोश रहेंगे
क्योंकि खबर बनाके चढ़ाया हमीं ने है

जो गैर थे वो लूटके चल भी दिये सही
उनको पलट पलट के बुलाया हमीं ने है

घर जाके बादशा को मनाएंगे क्यों नहीं
उसको पेशाबघर* में चिढ़ाया हमीं ने है * वाशरूम

Smart Indian said...

सत्य वचन!

अजित वडनेरकर said...

एकदम सही है
हमीं हैं और इसकी हामी है।

बाल भवन जबलपुर said...

sachai kah dee vah vah

उम्मतें said...

क्या हमारी टिप्पणी स्पैम हुई :)

Mansoor ali Hashmi said...

@ अली ,

नहीं, अली साहब spam नहीं हुई कोई टिपण्णी, आपकी कीमती राय का इन्तेज़ार रहेगा.

m.h.

उम्मतें said...

फिर कहां गई वो ? बड़ी मेहनत से लिखी थी :) कोशिश करता हूं ...

धोनी के व्हाइट वाश पे खामोश रहेंगे
उसको खबर बनाके चढ़ाया हमीं ने है

जो लूट के गये , वो गैर हैं, ये सही है
उनको पलट पलटके बुलाया हमीं ने है

घर जाके बादशा को मनाता वो क्यों नहीं
आखिर पेशाब घर* में चिढ़ाया उसी ने है

*वाश रूम

उम्मतें said...

आख़िरी शेर यूं भी पढ़ सकते हैं :)

घर जाके बादशा को मनाएंगे क्यों नहीं
आखिर पेशाब घर में चिढ़ाया हमीं ने है

Udan Tashtari said...

बहुत सही!!

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

.


* प्यारे चचाजान मंसूर अली हाशमी साहब *
आदाब !


आपकी रचनाओं में कटु सत्य होता है … आपके अपने ख़ास अंदाज़ में …
गणतंत्र का मज़ाक उड़ाया हमीं ने है,
भ्रष्टो को सर पे अपने बिठाया हमीं ने है.

जो लूट कर चले गए, वो तो थे ग़ैर ही,
फिर उसके बाद; लूटा, खसोटा हमीं ने है.


जवाब नहीं आपका …
वाह ! वाह !

अपना ग़म भुला कर औरों को ख़ुशियां बांटने के लिए आपको सलाम !
हार्दिक शुभकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार

Mansoor ali Hashmi said...

आपको तो अंदर तक की मालूम है! आपकी टिपण्णी ने टाईटल को सार्थक कर दिया......कि..."धोया किसी ने भी हो सुखाया हमीं ने है" !!

m.h.

पद्म सिंह said...

आपके एक एक शे'र का कायल हुआ ...
छोटा मुंह बड़ी बात लेकिन एक निवेदन
जो लूट कर चले गए, वो तो थे ग़ैर ही,
फिर उसके बाद; लूटा, खसोटा हमीं ने है.
मे फिर उसके बाद "लूट के खाया" या "नोच के खाया" आ जाता तो रदीफ़ दुरुस्त हो जाती... (सविनय)

Mansoor ali Hashmi said...

पद्म सिंहजी , आपकी सलाह बिलकुल दुरुस्त है, धन्यवाद के साथ स्वीकार करते हुए अपना रहा हूँ.

म.हाश्मी